मैं जन्मी, तुम सकुचाए
लड़की हुई
जान घबराए
व्यंग्य सहे
मुरझाये, सिर झुकाए
बोलो पापा, क्यूँ शर्माए?
मेरे जन्मदिन पर
अम्मा क्यूँ है रोती?
कुल की गरिमा क्या केवल
भइया से पूरी होती?
राजा बेटा कहते उसको
क्यूँ रानी बेटी नहीं बुलाया
बोलो पापा, क्यूँ बेमन पाला?
जो मैं पढ़ने जाती
अव्वल नंबर भी ले आती
मैं भी कविता बोल सुनाती
तमगे मैं भी जीत के आती
गुड्डा गुड़िया जो दिलवाते
मुझको अपने साथ खिलाते
अपने खाने की थाली से
मुझको क्यों था अलग बिठाया?
बोलो पापा, क्यूँ न कलम दिलाया?
इन झुकते कंधो की
मैं लाठी जो बन पाती
तुम्हारी पीड़ा हरने को
हर पीड़ा से लड़ जाती
ऐसा कौन दोष है मुझमें
जो दुत्कारा और दूर भगाया ?
बोलो पापा, क्यूँ नही विश्वास दिखाया?
रोज़ सिखाया, याद दिलाया
मैं हूँ परायी, घर ये पराया
पापा, फिर भी आंगन को
मैं याद बहुत कर रोती हूँ
चुप रह कर, सब सहती हूँ
लाज तुम्हारी रखती हूँ
झूठा ये कर्तव्य निभाया
तुमने सिर से बोझ हटाया
बोलो पापा, क्यूँ व्याह कराया?
छवि तुम्हारी कहते मुझको
फिर क्यूँ तुमसे वंचित हूँ?
रक्त-रूप भी तुमसे पाया
फिर भी न स्नेह जताया
किसने यह भेद बनाया?
भइया से क्यूँ कम पाया?
बोलो पापा, क्यूँ नही गोद उठाया?
अंश तुम्हारा मैं भी हूँ
फिर क्यूँ भ्रूण में मरती हूँ?
आज तुम्हारे छद्म पितृत्व
से यही प्रश्न मैं करती हूँ...
मैं जन्मी
तुम सकुचाए
लड़की हुई
जान घबराए
बोलो पापा, क्यूँ शर्माए?
["लड़की हुई है…." लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali ]
Picture Credits: Virginia, Frida Kahlo, Abstract, Primitivism
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