जाने क्या ढूंढता-खंगालता है ?
वर्तमान को छोड़,
भूत में क्यूँ भटकता है ?
चला है स्नेह ढूँढने इस कुंठित जग से
यूँ जैसे खुशबू आ जाए काग़ज़ के फूलों से
रोकू कैसे इसे ?
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
आकुल से - व्याकुल से जीवन का मारा
कुछ पिछले दिनों दुलार क्या मिला,
लालायित हुआ आकांक्षायें बढ़ीं
कागज की कश्ती, जीतने चली लहरों को
जो हवा के संग बहे, किसने रोका है उनको
स्मृति बस शेष रही बाकी कुछ ना रह सका
क्या बोलूं, कैसे समझाऊं,
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
असीमित मनमाने सपनों से हारा
उपहास मिला, कटु बाण चले
सारे जाने पहचाने भी अंजाने से जान पड़े
कुछ आघात हुए
कठिन हर सपन हुआ...
अश्रु विहीन हो नेत्र भी
बस किसी तरह जाग रहे
अब ना जाने किधर भाग रहा
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
रोता कभी, कभी हँसता बेचारा
नाप तोल की गिनती ना सीख सका
जहा मधु दिखा बस निकल पड़ा
ठोकर खाई
कई बार गिरा
टूटा, गिरा, जुड़ा, फिर टूटा
क्या जोड़ूं, क्या क्या सिखलाऊं?
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
अपनी धुनि रमाता, फिरता रहा आवारा
पराकाष्ठा तय करता है कटुता की
फिर भी सन्नाटे में, जाने किसे आवाज़ लगाता है
क्यूँ रोकू इसे ?
क्यूँ ना सपन दिखाऊँ ?
दुलारूं पुचकारूँ
क्यूँ ना लाड़ लगाऊँ ?
तुमने प्रेम ठुकराया...
यह तुम्हारी हानि है
क्यूँ ना मुस्काऊँ जब
मैने बस मन की मानी है
पुराने उन्ही गीतों पे
नई तान बनानी है
इतराऊँ इठलाऊँ
जब मैने बस मन की मानी है...
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
["टूटी लाठी" लामया द्वारा लिखी "साँवले होठों वाली" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें saanwale hothon wali]
Picture Courtesy: http://www.paul-gauguin.net/
Heart touching poem :)
ReplyDeleteस्मृति बस शेष रही बाकी कुछ ना रह सका
ReplyDeleteक्या बोलूं, कैसे समझाऊं,
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
असीमित मनमाने सपनों से हारा
उपहास मिला, कटु बाण चले
सारे जाने पहचाने भी अंजाने से जान पड़े
कुछ आघात हुए
कठिन हर सपन हुआ...
अश्रु विहीन हो नेत्र भी
बस किसी तरह जाग रहे
अब ना जाने किधर भाग रहा
आख़िर है तो ये पागल मन मेरा...
-painfully beautiful lines...
DBE8B07C26
ReplyDeletekiralık hacker
hacker arıyorum
kiralık hacker
hacker arıyorum
belek