ख्यालात: नया साल मुबारक


हम्म्म्म, तो नया साल आ गया

अब फिर से बलात्कार होंगे
फिर से बलात्कारी अल्पआयु
घोषित किया जाएगा
और फिर से इंडिया गेट पर 
कुछ मोमबत्तियां जल कर पिघल जाएंगी
जो बच जाएगा, वो होगी हमारी बेशर्मी..


हम्म्म्म, तो नया साल आ गया

अब फिर से 
वादों और नए नारों के बीच
किसान, आत्महत्या करते रहेंगे
जो बच जाएगी, वो, ये फिक्र कि
कोहली ने कितने रन बनाए ?
और दीपिका की ब्रा का रंग क्या है...


हम्म्म्म, तो नया साल आ गया

अब फिर से चौराहों पर फटेंगे बम
कुछ हम मे से, मारे जाएंगे.
फिर से सियासी जेलों में
सियासी कैदी पाले जाएंगे
जो बच जाएगा, वो होगा पिंडदान,
लोकतंत्र का


हम्म्म्म, तो नया साल आ गया

अब फिर से हमारा नौ साल का बच्चा
स्कूल जाएगा, और फिर से
एक नौ साल का ही बच्चा
हमारे घरों में बर्तन धोता, झाड़ू लगाता
पाया जाएगा
जो बच जाएगी वो होगी एक लाश
उस बचपन की
जो फिक्रमंदो के बीच रह कर
समय से पहले मर गया..


हम्म्म्म, तो नया साल गया

अब फिर से हम लिखते जाएंगे..
दानिशमंदों के बीच, दीवाने कहलाएंगे
हमारी सोच और ख्वाहिशों के साथ, फिर से,
पहले, बलात्कार होगा,
और फिर, उन सोचों का कत्ल..
जो बच जाएगा हर साल की तरह
वो हमारा जज़्बा कहलाएगा

नया साल मुबारक...

["नया साल मुबारक" राहुल द्वारा लिखी "ख्यालात" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें  Khayalat ] 
Picture Credits: The Coach,  Alekos Kontopoulos, Style: Social Realism


ख्यालात: जंगली हूं, जंगली रहने दो...

लोगों को शायद पता नहीं..
जंगली घोड़े की नाक मे
नकेल डालने की कोशिश
नहीं करनी चाहिये....

वो तुम्हारे बनाए
दायरे के हिसाब से नहीं दौड़ेगा..
उसका अलग हिसाब किताब है..

जंगली घोड़े से
बस दोस्ती करनी चाहिये
जहां मालिक बनने की कोशिश की
वो लात मारेगा,
और यकीन मानो,
ज़बरदस्त लात मारेगा

और फिर जब वो लात मारेगा
तो तुम
दुनिया से कहते फिरोगे के
घोड़ा साला पगला गया है..
एक बार भी ये नहीं कहोगे के
तुमने उसे
अपना ग़ुलाम बनाने की कोशिश की..

अब भी वक़्त है,
इस बात को समझ लो
तुम दुनिया के तौर तरीके में फंसे हो
समाज की सोच के ग़ुलाम हो
और वो ज़ंगली घोड़ा है
तुम से
तुम्हारे समाज से परे है..

जब जब
नकेल पहनाने की कोशिश करोगे
लात ही खाओगे...
और यकीन मानो,
ज़बरदस्त लात खाओगे

अगली बार ज़ंगली घोड़े को
अपने मतलब के लिये
इंसानो की रेस में दौड़ाना हो
तो उसके उपर
नकेल डालने की
कोशिश मत करना

बस उसके कान में
प्यार से जाके बोलना..

`मैं तुम्हारा दोस्त हूं..
 थोड़ी मदद चाहिये`
यकीन मानो..
एक बेलगाम, जंगली घोड़े से ज्यादा वफादार
कोई नहीं होता..

["जंगली हूं, जंगली रहने दो..." राहुल द्वारा लिखी "ख्यालात" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें  Khayalat ] 
Image Credit: Galloping Horses, Edvard Munch, Expressionism, 1912, cropped from source http://www.edvardmunch.org/galloping-horse.jsp 

ख्यालात: सो कॉल्ड बुद्धिजीवी

 
 
सो कॉल्ड बुद्धिजीवी...

एक दिन पटाखे जला दिये
तो इनके फेफड़ों में धुआं सा जम जाता है...
एक दिन होली खेल ली
 तो इन्हे सोमालिया में खड़े
प्यासे बच्चों की याद आ जाती है

सब के सब ... बुद्धिजीवी बन जीते हैं.

डियर लेडीज़ एंड जेंटिलमेन,

साल के तीन सो चौंसठ दिन
सामान खरीदने समय
प्लास्टिक का कैरी बैग तुम्हे चाहिये...
अपने घर में काम करने के लिये
एक बारह चौदह साल का छोटू
 या पिंकी तुम्हे चाहिये..
अपनी कार, हर सवेरे,
धुली हुई तुम्हे चाहिये..
 रुमाल बड़ा मिडिल क्लास लगता है
 रेस्टूरेंट में एक के बाद एक
 टिश्यू तुम्हे चाहिये..

पर हां...
 तुमसे कुछ बोलना भी तो मेरी हिमाकत होगी..
 तुम ठहरे पढ़े लिखे `इंटेलेक्चुअल`
जो अपने बच्चों को
कार के शीशे के अदर से दिखाते हो
ये बोल के कि बेटा
 "सी.. पीपल आर सेलेब्रेटिंग दिवाली.."
 और हम ठहरे मिडिल क्लास
 जो अपने वच्चों को बोलतें हैं
"ले बेटा पटाखे और दिवाली मना
वरना बुद्धिजिवियों के बच्चों को
पता कैसे चलेगा कि दिवाली क्या है".
["सो कॉल्ड बुद्धिजीवी" राहुल द्वारा लिखी "ख्यालात" संग्रह की कविता है. और पढ़ने के लिए देखें  Khayalat ] 
Image Credit: Starry Night, Edvard Munch, Expressionism, courtesy: J. Paul Getty Museum, Los Angeles 
 
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